7 मुख्य स्थानीय नालंदा में घूमने की जगह | Places to Visit in Nalanda

भारत के बिहार राज्य में स्थित नालंदा एक ऐतिहासिक जिला है। वहां का प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय अपने अध्यात्म और शिक्षा के लिए पूरी दुनियां में प्रसिद्ध है। गुप्त वंश के शासकों द्वारा बसाया गया शहर जैन और बौद्ध धर्म की शिक्षा और संस्कृति को उजागर करता हुआ बौद्ध और जैन धर्म के लोगों के दिल में अपनी अलग पहचान बनाएं हुए है। विश्व की उत्तम शैक्षिक धरोहर को अपने आंचल में छुपाए हुए नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। लोग देश विदेश से खंडहर को देखने और इतिहास को जानने और समझने के लिए बड़ी संख्या में जाते हैं। आज के लेख में समृद्धशाली शहर नालंदा में घूमने की जगह (Nalanda Me Ghumne Ki Jagah) के साथ नालंदा यूनिवर्सिटी के खंडहर का भ्रमण करने वाले हैं। 19 जून 2024 को प्रधानमंत्री नरेेंद्र मोदी ने नालंदा विश्वविद्यालय के नए कैंपस का उद्घाटन किया है।

Nalanda Me ghumne ki jagah

नालंदा एक ऐसा जिला है जहां आध्यात्मिकता के साथ प्राकृतिक पर्यटन स्थलों का बोलबाला है। नालंदा में स्थित विश्वविद्यालय खंडहर घूमने के बाद पावापुरी, राजगीर, विहार शरीफ़ में उपलब्ध पर्यटन स्थलों का भ्रमण करने की नीति बनाई जा सकती है। नालंदा के पास ही राजगीर एक ऐसा स्थल है जो प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर लोगों को मनोरंजन गतिविधियां करने के लिए आदर्श परिवेश मुहैया कराता है।

भारत प्राचीनकाल से सनातन संस्कृति और शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी रहा है। उत्तम शिक्षा का परिचय देते नालन्दा विश्वविद्यालय के अवशेष आज भी सोचने के लिए मजबूर कर देते हैं। दुनियां के सबसे बड़े पुरातन आवासीय विश्वविद्यालय का केंद्र नालंदा शैक्षिक विरासत का गवाह है। जहां बौद्ध, योग, ज्योतिष, कला, धार्मिक पुराण, पवित्र ग्रंथ, चिकित्सा, के क्षेत्र में उत्तम शिक्षा उपलब्ध कराई जाती थी। हम आपको उसी सांस्कृतिक विरासत से परिपूर्ण नालंदा में घूमने की जगह (Nalanda Me Ghumne Ki Jagah) का वर्णन लेख में कर रहे हैं।


नालंदा में घूमने की जगह | Nalanda Me Ghumne Ki Jagah


1. नालंदा विश्वविद्यालय (Ruins of Nalanda University)

Nalanda Me ghumne ki jagah

नालंदा विश्वविद्यालय का शिक्षा के क्षेत्र में गौरवशाली इतिहास रहा है। 5वी शताब्दी मे स्थापित यूनिवर्सिटी में भगवान बुद्ध के सिद्धांत और नवीनतम शिक्षा प्राप्त करने के लिए देश विदेश से विद्यार्थी भारत में आकर नालंदा विश्वविद्यालय में प्रवेश लेते थे और उच्च शिक्षा ग्रहण करते थे। प्राचीन काल में एशिया के सबसे बड़े महान विश्वविद्यालय में शामिल नालंदा अपनी उत्तम शिक्षा पद्धति के जाना जाता था। उस समय विश्वविद्यालय में 10000 से भी अधिक विद्यार्थी विद्यालय आवास में रहकर शिक्षा ग्रहण करते थे। विद्यार्थियों को उत्तम शिक्षा सुनिश्चित हो सके इसके लिए 2000 से अधिक विद्वान शिक्षक पढ़ाने का कार्य करते थे। 

विश्वविद्यालय का पुस्तक भंडार ज्ञान की अद्भुत किताबों से भरा था जो आने वाले भारत का सुनहरा भविष्य लिख सकती थी। लेकिन इस विद्या के मंदिर को तुर्की के क्रूर मुगल शासक बख्तियार खिलजी जो कुतुबुद्दीन ऐबक का सिपह सलाहकार था उसकी नजर लग गई अपनी मंद बुद्धि सनक में चूर खिलजी ने 12वी शताब्दी में यूनिवर्सिटी को तहस नहस करने के लिए पुस्तक भंडार कक्ष को आग लगाकर कर जला दिया। कहते हैं पुस्तक भंडार लाखों किताबों से भरा था जो लगातार 6 महिनों तक जलता रहा। समय के साथ साथ नालंदा विश्वविद्यालय के जख्म भरते गए और खंडहर के रूप में अपने आपको ढालते गए।

Nalanda Me ghumne ki jagah

अंग्रेज पुरातत्व विज्ञानी अलेक्जेंडर कनिंघम ने 1915 में जब नालंदा विश्वविद्यालय की खोज की तो लोगों को इसके बारे में पता चला। नालंदा के इतिहास और महत्व को देखते हुए यूनेस्को ने 15 जुलाई 2016 को नालंदा विश्वविद्यालय को बिहार का दूसरा विश्व धरोहर स्थल के रूप में जगह दी है। आज भी नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष खंडहर के रूप में देखे जा सकते हैं। 9 किमी के दायरे में फैली यूनिवर्सिटी स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है जिसमें देखने के लिए विद्यार्थियों के शिक्षण कक्ष, 11 आवासीय कक्ष, प्राचीन इमारतें, विशाल परिसर, बौद्ध मंदिर, मठ, भव्य स्तूप जैसी प्राचीन धरोहर है। यूनिवर्सिटी के खंडहर को देखने के लिए प्रवेश के तौर पर साधारण टिकट शुल्क लिया जाता है।


2. अशोक स्तूप (The Great Ashok Stup)

नालंदा विश्वविद्यालय की महान संरचनाओं में से एक अशोक स्तूप है जो पिरामिड के आकार में स्थापित विश्वविद्यालय परिसर में मौजूद हैं। स्तूप का निर्माण 3वी शताब्दी में सम्राट अशोक ने शारिपुत्र के सम्मान में करवाया था जो भगवान बुद्ध के प्रिय शिष्य में से एक थे और नालंदा में ही उनका जन्म हुआ था। बौद्ध धर्म की संस्कृति को उजागर करता हुआ स्तूप उत्कृष्ट संरचना में से एक है।


3. ह्वेनत्सांग यादगार हॉल (XuanZang Memoriyal Hall)

Nalanda Me Ghumne Ki Jagah

भारत की अनमोल संस्कृति और कला के दर्शन करने के लिए प्राचीन काल में विदेशों से अनेकों लोगों ने अपने अपने काल में यात्राएं की और संपूर्ण भारत के दर्शन किए। जिसमें फाहयान, मेगास्थनीज, चीनी यात्री ह्वेनत्सांग आए और उन्होंने अपने लेख में भारत की यात्रा का गुणगान प्रस्तुत किया। ह्वेनत्सांग 6वी शताब्दी में भारत में अध्यात्म और बौद्ध संस्कृति का गहन अध्ययन किया उसी की स्मृति में मेमोरियल हॉल का निर्माण किया गया है। मेमोरियल हॉल में चीनी यात्री ह्वेनत्सांग द्वारा भारत में की गई यात्रा से संबंधित बहुत से पुस्तक रखी गई है जिसमे भारत के इतिहास का अद्भुत चित्रण प्रस्तुत किया गया है।


4. नालंदा पुरातात्विक संग्रहालय (Nalanda Archeological Museum)

Nalanda Me Ghumne Ki Jagah

नालंदा पुरातात्विक संग्रहालय विश्वविद्यालय के समृद्धशाली इतिहास और प्रदान की जाने वाली उत्तम शिक्षा पद्धति की गाथा प्रस्तुत करता है। नालंदा विश्वविद्यालय की खोज होने के बाद पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने खोदाई करवाई। खोदाई के दौरान निकली हुई अमूल्य धरोहर को संग्रहालय में संरक्षित करके रखा गया है। संग्रहालय में भगवान बुद्ध की अष्ट धातु से निर्मित प्राचीन मूर्तियां, पांडुलिपि, पत्थरों पर चिन्हित अभिलेख, चावल के दाने, तांबे के बर्तन, सोने के सिक्के जैसी अमूल्य धरोहर को बहुत ही सुरक्षित संग्रह करके रखा गया है। नालंदा के समृद्धि सांस्कृतिक धरोहर से रूबरू होने के लिए संग्रहालय में भ्रमण करने का विचार कर सकते हैं। नालंदा पुरातात्विक संग्रहालय सप्ताह के शुक्रवार को छोड़कर बाकी सभी दिन खुला रहता है जिसमे प्रवेश करने के समय सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक रहता है।


5. तेलीया भंडार

Nalanda Me Ghumne Ki Jagah

नालंदा में तेलीया भंडार एक धार्मिक स्थल है जहां भगवान बुद्ध की काले रंग में मूर्ती स्थापित की गई है। तेलीया भंडार को काले बुद्धा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। अधिकांश पर्यटक नालंदा के खंडहर देखने के बाद मंदिर में भगवान बुद्ध के दर्शन करने के लिए जाते हैं। नालंदा खंडहर परिसर से मंदिर एक किमी की दूरी पर स्थित है जहां आसानी से पैदल चलकर पहुंचा जा सकता है।


6. सूर्य मंदिर सूरजपुर नालंदा (Surya Temple Nalanda Holy Place)

नालंदा में स्थित सूर्य मंदिर हिंदू मंदिर है जो अपनी प्रतिष्ठा के लिए जाना जाता है। कोणार्क के सूर्य मंदिर की तरह नालंदा का सूर्य मंदिर पूरे देश मे प्रसिद्ध है। भगवान सूर्य को समर्पित मंदिर छट पूजा के दिन आस्था का केंद बन जाता है। छट पूजा के दिन भगवान सूर्य को जल अर्पित करने के लिए अर्घ्य देने वाले लोगों की बड़ी संख्या में भीड़ लगती है। मंदिर को हिंदू देवी देवताओं और बौद्ध की मूर्तियों से अलंकृत किया गया है जिसमे सबसे ज्यादा माता पार्वती की पांच फीट ऊंची मूर्ति आकर्षित करती है। मंदिर के पास में एक सरोवर भी है जो मनोरंजन के साथ प्रकृति के करीब होने का ऐहसास कराती है।

Nalanda Me Ghumne Ki Jagah

मन्दिर में प्रत्येक रविवार और साल में दो बार चैत माह और कार्तिक माह में मेले का आयोजन किया जाता है। मेले में भ्रमण करने और आनंद उठाने के लिए आसपास के स्थानीय लोग बड़ी संख्या में शामिल होते हैं। आसपास के गांव और जिले तक मंदिर की प्रतिष्ठा फैली हुई है मंदिर को बहुत ही शक्तिशाली और चमत्कारी माना जाता है। ऐतिहासिक और पौराणिक मान्यताओं के कारण लोगो की आस्था है की किसी भी व्यक्ति को शारीरिक रूप से समस्या हो जाती है तो मंदिर परिसर में उपलब्ध सरोवर में नहाकर पांच अलग अलग दिन जाकर दर्शन करता है तो कष्ट मुक्त हो जाता है। सूर्य मंदिर नालंदा विश्वविद्यालय खंडहर से दो किमी दूर बडगांव में स्थित है।


7. कुंडलपुर दिगंबर जैन मंदिर

Nalanda Me Ghumne Ki Jagah

नालंदा जिले में कुंडलपुर जैन धर्म के लोगों का ख़ास पवित्र स्थल माना जाता है। लोगों का मत है की कुंडलपुर में 2600 साल पहले जैन धर्म के 24 वे तीर्थकर महावीर स्वामी का जन्म हुआ था। बचपन से लेकर किशोर अवस्था तक जीवन के 22 साल तक महावीर स्वामी ने कुंडलपुर में ही समय गुजारा था। कुछ लोगों का मत है की महावीर स्वामी के पहले शिष्य गौतम स्वामी का भी जन्म कुंडलपुर में ही हुआ था जिसकी वजह से यह शहर जैन धर्म के लोगों का और भी पवित्र तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है। महावीर स्वामी की स्मृति में दिगंबर जैन मंदिर का निर्माण करवाया गया है। कुंडलपुर में स्थित जैन मंदिर भव्यता की मूरत है मंदिर की नागर वास्तुशैली मनमोहित कर देगी। मंदिर में अलंकृत स्तंभ और छत आकर्षित करती है। मंदिर के अंदर आसान मुद्रा में महावीर भगवान की मूर्ती स्थापित की गई है। महावीर भगवान कुंडलपुर में श्री बड़े बाबा के रूप में पूजे जाते हैं। कुंडलपुर शहर में स्थापित दिगंबर मंदिर जैन धर्म के लोगों के दिलों पर बसता है।

मंदिर की लोकेशन : कुंडलपुर नालंदा शहर से बाहर 2 KM दूर एक कस्बा है। नालंदा रेलवे स्टेशन से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है पहुंचने के लिए ऑटो रिक्शा और ई रिक्शा मुख्य साधन हैं।


नालंदा पहुंचने का साधारण तरीका (How To Reach Nalanda)

नालंदा बिहार राज्य का लोकप्रिय जिला है जो अपने गौरवशाली प्राचीन विश्वविद्यालय के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है। हम आपको नालंदा पहुंचने का आसान माध्यम बताने वाले हैं ताकि अपने बजट के अनुसार यात्रा कर सकें।

रेल मार्ग

नालंदा रेल मार्ग के द्वारा पहुंचना चाहते हैं तो भारत के अधिकतर विकसित शहरों से नालंदा जिले के लिए रेलगाड़ी संचालित की जाती हैं। नालंदा शहर में पूर्वोत्तर रेलवे के अंतर्गत नालंदा रेलवे स्टेशन का निर्माण किया गया है। अपने शहर से सीधा नालंदा के लिए टिकट निकाल कर सीधा पहुंच सकते हैं। दूसरा रास्ता है राजगीर में उपलब्ध रेलवे स्टेशन पहुंचकर आगे सड़क मार्ग से होते हुए नालंदा पहुंच सकते हैं। राजगीर का रेलवे स्टेशन काफ़ी विकसित है जहां नालंदा जाने वाली अधिकतर ट्रेन होकर गुजरती हैं।


वायुमार्ग

वायुमार्ग द्वारा नालंदा पहुंचने के लिए थोड़ा घूम कर जाना होगा। नालंदा में कोई हवाई अड्डा मौजूद नहीं है। नालंदा के सबसे नजदीक बिहार की राजधानी पटना है जो 81 KM दूर है। पटना में जयप्रकाश नारायण इंटरनेशनल एयरपोर्ट है। फ्लाईट से पटना पहुंच जाए और फिर पटना से बस, टैक्सी या कैब बुक करके सीधा नालंदा तक पहुंच जायेंगे।


सड़क मार्ग

सड़क मार्ग द्वारा पहुंचने के लिए नालंदा जिले के आसपास वाले लोग अपने निजी वाहन से बड़े आसानी से पहुंच सकते हैं। नालंदा जिले की सड़के आरामदायक सफ़र प्रदान करती है। बिहार के शहर पावापुरी, गया, राजगीर से नालंदा पहुंचना बहुत ही आसान है। बिहार के पड़ोसी राज्य बंगाल, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में बड़े बड़े मुख्य शहरों से पटना के लिए बस चलती हैं। बस के माध्यम से पटना पहुंचकर आगे का सफर आसानी से कर सकते हैं।


नालंदा के आसपास घूमने लायक शहर (Places to Visit Around Nalanda)

पावापुरी        - 25 किमी

बोधगया        - 110 KM दूर

कुंडलपुर       - 2 किमी

राजगीर       - 12 किमी दूर

बिहार शरीफ़ - 13 किमी

  

नालंदा की यात्रा में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न-FAQ on Nalanda Me Ghumne Ki Jagah

1. नालंदा विश्वविद्यालय को किसने बनवाया था?

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5 शताब्दी में मगध के राजा कुमार गुप्त ने की थी। लेकिन यूनिवर्सिटी को पूरी तरह बनाने का श्रेय गुप्त साम्राज्य, हर्ष साम्राज्य और पाल साम्राज्य को जाता है। यूनिवर्सिटी का अलग हिसा समय के साथ साथ विभिन्न शासन काल में पूर्ण हुआ। कन्नौज के राजा हर्षवर्धन ने 7 वी शताब्दी में यूनीवर्सिटी की मुख्य ईमारत में दूसरी मंजिल का निर्माण करवाया और 9 वी शताब्दी में बंगाल के राजा देवपाल ने तृतीय मंजिल का निर्माण करवाया।

2. नालंदा का प्रसिद्ध स्थानीय भोजन क्या है?

नालंदा का सबसे प्रसिद्ध भोजन खाजा है जो एक तरह की मिठाई होती है। जिसे चीनी की चासनी से तैयार किया जाता है। नालंदा और राजगीर के बीच में स्थित सिलाव गांव स्वादिष्ट खाजा के लिए पूरे बिहार में प्रसिद्ध है।

3. नालंदा विश्वविद्यालय को किसने जलाया था?

नालंदा विश्वविद्यालय को 1199 में क्रूर तुर्की मुगल शासक बख्तियार खिलजी ने जलाया था। बख्तियार खिलजी कुतुबुद्दीन ऐबक का सिपह-सलाहकार था। नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तक भंडार कक्ष में रखी ज्ञान के सागर से भरी पुस्तकें जलकर राख हो गई।

4. नालंदा से राजगीर की दूरी कितनी है?

नालंदा से राजगीर करीब 12 किमी दूर पड़ता है। नालंदा से राजगीर पहुंचने के लिए तांगा, ऑटो रिक्शा, ई रिक्शा मुख्य रूप से साधन है। राजगीर नालंदा जिले का एक आकर्षण से भरा पर्यटन स्थल है जहां सभी उम्र के लोगों के लिए मनोरंजन करने के साधन मौजूद हैं।

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